Monday, May 21, 2018

मैं वेदना की गहराई लिखता हूं

शब्द मेरे हम इंसानों सा रोते हैं
मैं वेदना की गहराई लिखता हूं ,

उजाले में हर कोई साथ चलता है
अंधेरों में भी मैं परछाई लिखता हूं ,

अपने दुःख में मैं चुप हो जाता हूं
दूसरों के सुख में शहनाई लिखता हूं ,

मैं चुप होके भी कुछ कह जाता हूं
ऐसे एहसासो की करिश्माई लिखता हूं ,


जो न हो सबके हित और पक्ष में
ऐसी वृद्धि को मैं महंगाई लिखता हूं ,

उजालों तक ही हों जो सीमित कदम
इसको ही स्वार्थ पूर्ण हिताई लिखता हूं,

जहां पवित्र हो जाये आत्मा मिले शांति
उनको ही मैं सावन रमजायी लिखता हूं ,

जहां न हो भेदभाव न कोई ऊंच नीच
ऐसे व्यवहार को प्रभुताई लिखता हूं ,

दिल का सरल होना भी बेहद जरूरी है
सबके हृदयं में एक नरमाई लिखता हूं ,

बात जहां हो सम्मान के रक्षा की
उस स्थिति में मैं कड़ाई लिखता हूं ,

कठिन परिस्थितियों में सरल व्यवहार
ऐसे मनः दशा को चतुराई लिखता हूं ,

मैं इंसानों को भी पर दे दूं परिंदों सा
फ़िर आकाश कोअनंत ऊंचाई लिखता हूं ,

जहां से करें मानवता का अमृतपान हम
गुरुबान क़ुरान गीता व चौपाई लिखता हूं ,

मानव सेवा ही मेरा धर्म रहा सदा से ही
मैं तो रब ख़ुदा ईश रघुराई लिखता हूं

अच्छों के साथ अच्छा बुरों के साथ भी
देखा हरदम अच्छा है न बुराई लिखता हूं ,

जिस मचान पर ठिठुर गयी ख़ुद सर्दी भी
उस ठिठुरन को ही मैं रज़ाई लिखता हूं ,

जब स्वार्थ ही नींव हो जाये रिश्तों की
फ़िर इनसे मैं बेहतर तन्हाई लिखता हूं ,

जब भी निराश हो झगझोर दे मन को
एहसासों की ऐसे में गरमाई लिखता हूं ,

इस विस्तृत भू भाग की संरचना है अद्भुत 
पहाड़ों की ऊंचाई कहीं राई लिखता हूं ,

एक ऐसा स्वरूप जिसमे है निःस्वार्थ प्रेम
मां माता अम्मी कहीं माई लिखता हूं

बेनक़ाब चेहरों पर रंग नहीं चढ़ते हैं
सादगी को भी अलग रंगाई लिखता हूं ,

अपने दर्द में मैं चुप चाप रो लेता हूं
फ़िर दूसरों के दर्द की दवाई लिखता हूं ,

जहां बांध दे दीवारे चलने से हमें
वहां कुछ मार्ग हवाई लिखता हूं ,

तूफ़ानों की भीअपनी एक कहानी होती है
हवा के रुख़ को पुरवाई लिखता हूं ,

कुछ विरोभाष मन में जो छिपे हैं
मैं ऐसे विचारों की सफ़ाई लिखता हूं ,

खेल कभी कुछ एहसासों को तोड़ते है
मैं कुछ खेल तमाशाई लिखता हूं ,

जहां टूट जाये उम्मीद और हार जाएं हम
वहां मैं विश्वासों की भराई लिखता हूं ,

गिर जानेपर भी पेड़ों में शाख निकलती है
इसको ही क़ुदरत कीरहनुमाई लिखता हूं ,

इस प्रकृति का रहस्य अनन्त है यहाँ
कहीं नदियां पहाड़ कहीं खाई लिखता हूं ,

गलतियों को मैं अपनी कभी नहीं छुपाता
कभी हिसाब तोकभी भरपाई लिखताहूं ।

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