Monday, March 26, 2018

जनमानस और मेरी कविता

रचना उसकी अति सुंदर है
मौलिकता उसका आधार सदा
जनमानस से गहरा नाता
करता सबका आभार सदा ।

मुखमंडल उसका अति तेजवान
रवि किरणों से फैला जाता
दुःख दर्द सभी के घावों को
निःस्वार्थ प्रेम सहला जाता ।

उसकी रचना के भावों से
कविता का मुख खिल जाता है
प्यासी धरती कर हरी भरी
नभ को भी वह भाता है ।

रचना में मैं न दिखता है
जन जीवन पर विचार रहा
शांत सरल सी रचना में
हर पीड़ा का उपचार रहा ।

ईश्वर उसको शक्ति देगा
उसे नहीं अब रुकना है
हो विकट समस्या भी कितनी
उसे नहीं अब झुकना है ।

नहीं तनिक दूर समय वह
जब नभ में छा जाएगा
अपनी कविता के अमृत को
जन जन पर बरसायेगा ।

Sunday, March 18, 2018

मानवता का आधार

इक छवि थी रवि सी चमक रही
मृदु भावों से व्यवहार रहा
स्वच्छ हृदयं स्वछंद वेग
मन मानवता का आधार रहा
                            मन में उसके कुछ भाव छुपे
                            स्पष्ट उसे न करता था
                             मन के भीतर सहज भाव से
                             सौ बातों को भरता था
मौलिकता शायद आधार बना
स्वछंद मार्ग पर बढ़ता जाता
भले सफ़ल असफ़लता होती
स्वर्ण शिखर पर चढ़ता जाता
                           जनमानस से गहरा नाता
                           मन में अटूट विश्वास भरा
                           हो सफ़ल सफ़लता तो अच्छा
                           असफ़लता भी प्रभास रहा
कल को जब रजनी बीतेगी
चिड़ियों का फ़िर गुंजन होगा
वह दिनकर अति अभिमानित होगा
जिसमें उसका अभिनंदन होगा ।

Thursday, March 15, 2018

चलो फ़िर नए आशियाने बना लें

सुलगती हुई धूप में भी चलें हम
गुजरते हुए पलों में भी मिलें हम
बदलने के कुछ तो बहाने बना लें
चलो फिर नए आशियाने बना लें ।

मैं ठहरूं कहीं तो लगे छाँव तेरी
हो सब कुछ प्रकाशित या रातें अंधेरी
चुप हों कहीं या कहीं गुन गुना लें
चलो फिर नए आशियाने बना लें ।

क्या बीता क्या गुजरा क्या होने है वाला
भूंखा है कौन और किसका निवाला
तो कल के भी चल के तराने बना लें
चलो फिर नए आशियाने बना लें ।

जीवन है पहिया बदलते समय का
स्वार्थ से भरा जमाना है "मैं" का
चलो प्यार के भी ठिकाने बना लें
चलो फिर नए आशियाने बना लें ।

Tuesday, March 13, 2018

मैं नभ का विस्तार बनूं

हां कुछ लोगों का मैंने भी
संसार उजड़ते देखा है
हसीं ख़ुशी के आंगन का
परिवार बिछड़ते देखा है
इतनी शक्ति है मुझमें कि
मैं उनका संसार बनूं
यही प्रार्थना अन्तर्मन से
मैं नभ का विस्तार बनूं ।
                                    जहां कहीं भी जीवन प्यासा
                                    बूंदे बनकर मैं गिर जाऊं
                                    अगर कमी उम्मीदों में है
                                    दीपक बनकर मैं आ जाऊं
                                    मन को इतना दृढ़ कर लो
                                    फ़िर दृढ़ता का आधार बनूं
                                    खड़ी पहाड़ी समतल होगी
                                    मैं नभ का विस्तार बनूं ।
सागर की लहरों से डरकर
ख़ुद को पीछे तुम मत करना
कदम भले ही पीछे जाएं
ख़ुद में तुम यूं साहस भरना
तुम सरिता में नाव चलाओ
मैं उसकी पतवार बनूं
लहरें फिर हो ऊंची क्यों न
मैं नभ का विस्तार बनूं ।

Sunday, March 11, 2018

जाने अनजाने में

चिड़ियों की आवाजें भी बदली
                                     मौसम की हरियाली भी
बरखा की बूंदे भी बदली
                                      सावन घटा निराली भी
कई जमाने यूं ही बदले 
                                     खड़े खड़े बतियाने में
कितना सब कुछ बदल गया
                                    जाने अनजाने में ।


मैं चातक पक्षी को भी
                                    आसमान में ढूढ़ रहा
चका चौंध और भागदौड़ में
                                     मैं किंकर्तव्यविमूढ़ रहा 
नहीं जमाने चलते बीते
                                    बदल गया सुस्ताने में
कितना सब कुछ बदल गया
                                    जाने अनजाने में ।


बच्चों की मुस्कानें में ही
                                    मैंने ख़ुशी सदा पायी है
मीठी प्यारी प्यारभरी 
                                    आवाजें मन को भायी है
हंसना बदल गया रोने में
                                    गुड़ियों से फुसलाने में
कितना सब कुछ बदल गया
                                    जाने अनजाने में ।


मां की लोरी सबसे प्यारी
                                    वही रही थी बचपन में
इतना शोर शराबा है
                                    वह दबी रह गयी मेरे मन में
मां की लोरी दबी रह गयी
                                    गाने और बजाने में 
कितना सब कुछ बदल गया
                                    जाने अनजाने में ।


कुछ साथ मिले कुछ गए
                                    किसी से अच्छा ख़ासा पाठ लिया
कुछ से छूटे दमन फिर कहीं
                                    किसी का साथ मिला 
कौन मिला और कितने छुटे
                                    स्वार्थ सहित ज़माने में
कितना सब कुछ बदल गया
                                    जाने अनजाने में 


Wednesday, March 7, 2018

फ़िर शब्दों से मैंने खेला

गहन उजाली पसर रही थी
बहती सरिता के तीरों पर
श्वेत चांदनी उलझ रही थी
गुज़र रहे राहगीरों पर ,
सरिता में लगते देखा फिर
चाँद-चांदनी का मेला
अति सुंदर वह पहर रहा
फ़िर शब्दों से मैंने खेला ।

मनमोहक अति वह दृश्य रहा
रजनी रति भी झलक रही
प्रेम सहित आलिंगन हो
रजनी की भी यह ललक रही,
पल भर को ही वह पहर रहा
फ़िर बीत रही रजनी बेला
मन से मन में था शांत रहा
फ़िर शब्दों से मैंने खेला ।

सरिता लहरों पर चंचल क्रीड़ा
नभ से बरस रहा श्रृंगार
राग मिलन सरिता से फ़िर
इस स्मृति का मन पर प्रहार,
इस पल को कर तन्हाई में
क़दम बढ़ा मैं चला अकेला
मद्धम सरिता पर तेज़ हवा
फ़िर शब्दों से मैंने खेला ।


Tuesday, March 6, 2018

काश !

काश कि मैंने उस रात तुम्हारी बात मान ली होती
और ज़ी भरके तुम्हें यूं न देखा होता
मैं तो आज भी वहीं रह गया, पर
वो ग़लती न होती तो अनदेखा न होता ।

कह दो कि तुम चाहते थे मैं तुम्हे न देखूँ
फ़िर क्यों मुझे एक दफ़ा नहीं रोका था
मैं तो उन मासूम आंखों की मासूमियत देखता था
न मालूम था कि नज़रों का सबसे बड़ा धोखा था ।

माना कि मैं ग़लत था तो तुम भी अनजान नहीं थे
इरादे भले ही न सही तुमसे बेईमान नहीं थे
पल भर को मैं समझ ही नहीं पाया था
पर यूँ तुम भी तो एक पल के मेहमान नहीं थे ।

न जाने कितनी गलतियां होती रहीं है मुझसे इस ज़माने में
तुम थे सही? नहीं तुम्हारी भी यही रज़ा मंदी थी
मैं सब कुछ देख सकता हूं बंद आंखों से भी
पर उस रात मेरी खुली आंखे भी अंधी थीं ।

मैं वो न देख सका जो मुझे सच मे देखा था
जो तुमने चाहा मैं वो सब करता चला गया था
काश की तुम फ़िर कर दो सारी ग़लती तुम्हारी रही
लंबी सांसे मैं गहराई से भरता चला गया था ।

काश की तुम मुझे झूठा बनाकर खुद को बचा लो
अपनी सफाई में मैं एक शब्द भी नहीं बोलूंगा
मैंने अपनी आंखें उस रात भी नहीं खोलीं थी
मैं उन्हें आज भी नहीं खोलूंगा ।







Sunday, March 4, 2018

हां शायद तुमने देखा हो ।

देखा हो तुमने जब मुझे तुम्हारी सबसे ज्यादा जरूरत थी
और तुम दूर खड़े मेरे बिखर जाने का इंतज़ार कर रहे थे ,
देखा हो तुमने जब मैं तुम्हारी यादों को एक तार में पिरो रहा था
और तुम बड़ी क़ाबिलियत से मेरी यादों को तार तार कर रहे थे ,
देखा हो तुमने शायद जब मैं तुम्हारे साथ के सपने देख रहा था
और तुम नजरें चुराकर सारे सपने बेकार कर रहे थे,
देखा हो शायद तुमने तब भी जब मेरी आँखें नम थीं
और तुम चुपचाप उनके बह जाने का इंतज़ार कर रहे थे,
देखा हो तुमने जब मैं तुम्हारी सारी गलतियां माफ़ करता था
और तुम जान बूझकर वही गलतियां बार बार कर रहे थे,
रही होगी तुम्हारी भी कई मजबूरियां , शायद ?
यूं ही नहीं तुम आँखों को चुराकर जुबां से इनकार कर रहे थे,
देखा हो तुमने मैं मेरे टूट जाने पर भी खड़ा था
और तुम तेज़ हवाओं के चलने का इंतज़ार कर रहे थे,
देखा हो तुमने जब मैं तुम्हारे उत्तर की प्रतीक्षा महीनों करता था
और तुम मेरे हर प्रश्न को सफाई से दरकिनार कर रहे थे,
देखा हो तुमने शायद अपनी बेपरवाही मेरे लिए
और हम तुम्हे जाने किस हद तक प्यार कर रहे थे ,
हाँ शायद तुमने देखा हो जब मैं पूरी तरह फर्श पर पड़ा था
और तुम बरखा के बरस जाने का इंतजार कर रहे थे,
देखा हो तुम्हे जब मैं तुम्हारी हर याद को नायाब बना रहा था
और तुम बखूबी सारी यादों का कारोबार कर रहे थे ।

Saturday, March 3, 2018

मैं भी चाँद सितारे हूँ

मैंने भी चलना सीखा है , सौ बार फिसल कर गिरने से
ख़ुद को यूँ मजबूत बनाया , बार बार बिखरने से
न जाने मैं कितना भागा , पर नदियों के किनारे हूँ
दिन में चुप हूँ पर रातों में , मैं भी चाँद सितारे हूँ ।

उठती लहरों सा मन मेरा , सागर एक समाया है
ख़ुद को खोकर ही मैंने , ख़ुद को आज बनाया है
चला आज मैं आगे को तो , पीछे राह निहारे हूँ
भले उजाले दूर खड़े पर , मैं भी चाँद सितारे हूँ ।

मैं कितना आगे जाऊंगा , समय मुझे बतलायेगा
पहुँचूँगा मैं शून्य ,शिखर या , अस्तित्व मेरा मिट जाएगा
समय रहेगा मेरा साथी , मन में यही विचारे हूँ 
मौन रहूं या फिर मैं गाऊँ , मैं भी चांद सितारे हूँ ।

विश्वास रहा यदि मन में तो , पथ स्वनिर्मित हो जाएगा
जब भी सुमन खिलेगा वह , पथ मेरा महकाएगा
सूरज से ही सीखा है फिर , एकटक उसे निहारे हूँ 
भले रौशनी मद्धम है पर , मैं भी चाँद सितारे हूँ ।



Friday, March 2, 2018

बस मेरी यही कहानी है

शिखर बिंदु पर तब मैं था
उत्तण्ड सूर्य सा  दिखता था
अस्त्र शस्त्र सब फ़ीके थे
निर्भीक निडर हो लिखता था
शासन सत्ता का जोर हुआ
यह देख मुझे हैरानी है
मतलब भर केवल उठता हूं
बस मेरी यही कहानी है

उठा कभी तो लोगों ने
मुझको मार गिराया है
अडिग हुआ यदि पथ पर मैं
घर आ आकर धमकाया है
नदियां अब सारी स्थिर हैं
कूपों में बहता पानी है
हूं निसहाय अभी तो मैं
बस मेरी यही कहानी है ।

किन्तु सूर्य का तेज़ रोक ले
ऐसा कोई वीर नहीं है
नभ से न गिर जाए ऐसा
जग में कोई नीर नहीं है
सच से न भय खाता हूं
सच बहता जैसे पानी है
आज उगा  हूं कल फैलूँगा
बस मेरी यही कहानी है ।


एक कदम

पिछले कुछ महीनों में एक बात तो समझ में आ गयी कि इस दुनिया में कुछ भी स्थायी नहीं है। और स्थायित्व की कल्पना करना, यथार्थ से दूर भागने जैसा ह...