इक छवि थी रवि सी चमक रही
मृदु भावों से व्यवहार रहा
स्वच्छ हृदयं स्वछंद वेग
मन मानवता का आधार रहा
मृदु भावों से व्यवहार रहा
स्वच्छ हृदयं स्वछंद वेग
मन मानवता का आधार रहा
मन में उसके कुछ भाव छुपे
स्पष्ट उसे न करता था
मन के भीतर सहज भाव से
सौ बातों को भरता था
स्पष्ट उसे न करता था
मन के भीतर सहज भाव से
सौ बातों को भरता था
मौलिकता शायद आधार बना
स्वछंद मार्ग पर बढ़ता जाता
भले सफ़ल असफ़लता होती
स्वर्ण शिखर पर चढ़ता जाता
स्वछंद मार्ग पर बढ़ता जाता
भले सफ़ल असफ़लता होती
स्वर्ण शिखर पर चढ़ता जाता
जनमानस से गहरा नाता
मन में अटूट विश्वास भरा
हो सफ़ल सफ़लता तो अच्छा
असफ़लता भी प्रभास रहा
मन में अटूट विश्वास भरा
हो सफ़ल सफ़लता तो अच्छा
असफ़लता भी प्रभास रहा
कल को जब रजनी बीतेगी
चिड़ियों का फ़िर गुंजन होगा
वह दिनकर अति अभिमानित होगा
जिसमें उसका अभिनंदन होगा ।
चिड़ियों का फ़िर गुंजन होगा
वह दिनकर अति अभिमानित होगा
जिसमें उसका अभिनंदन होगा ।
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