Sunday, March 18, 2018

मानवता का आधार

इक छवि थी रवि सी चमक रही
मृदु भावों से व्यवहार रहा
स्वच्छ हृदयं स्वछंद वेग
मन मानवता का आधार रहा
                            मन में उसके कुछ भाव छुपे
                            स्पष्ट उसे न करता था
                             मन के भीतर सहज भाव से
                             सौ बातों को भरता था
मौलिकता शायद आधार बना
स्वछंद मार्ग पर बढ़ता जाता
भले सफ़ल असफ़लता होती
स्वर्ण शिखर पर चढ़ता जाता
                           जनमानस से गहरा नाता
                           मन में अटूट विश्वास भरा
                           हो सफ़ल सफ़लता तो अच्छा
                           असफ़लता भी प्रभास रहा
कल को जब रजनी बीतेगी
चिड़ियों का फ़िर गुंजन होगा
वह दिनकर अति अभिमानित होगा
जिसमें उसका अभिनंदन होगा ।

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