Thursday, March 15, 2018

चलो फ़िर नए आशियाने बना लें

सुलगती हुई धूप में भी चलें हम
गुजरते हुए पलों में भी मिलें हम
बदलने के कुछ तो बहाने बना लें
चलो फिर नए आशियाने बना लें ।

मैं ठहरूं कहीं तो लगे छाँव तेरी
हो सब कुछ प्रकाशित या रातें अंधेरी
चुप हों कहीं या कहीं गुन गुना लें
चलो फिर नए आशियाने बना लें ।

क्या बीता क्या गुजरा क्या होने है वाला
भूंखा है कौन और किसका निवाला
तो कल के भी चल के तराने बना लें
चलो फिर नए आशियाने बना लें ।

जीवन है पहिया बदलते समय का
स्वार्थ से भरा जमाना है "मैं" का
चलो प्यार के भी ठिकाने बना लें
चलो फिर नए आशियाने बना लें ।

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