Sunday, April 8, 2018

एक लड़की है जो किसी को समझ नहीं आती है

अपने सरल भावों से वह सबके मन को भाती है
चुप रहकर भी न जाने क्या कुछ कह जाती है
अपनी हर ज़िद पर वह ख़ुद को ख़ुद ही बहलाती है
अपने हर सपने को बड़े प्यार से वह सहलाती है
अपनी उदासियों पर वह ख़ुद को ख़ुद ही समझाती है
अपनी ख़ुशबू से पूरे जहान को वह महकती है
अपनी उदासी को बड़े चालाकी से वह सबसे छुपाती है
एक लड़की है जो किसी को समझ नहीं आती है ।



वो रोती है फ़िर भी न जाने कैसे मुस्कुराती है
पल भर में ही वह किसी हवा सा बह जाती है
अपनी गलतियों को वह कभी नहीं छुपाती है
अपने अच्छे हुए कामों पर बस जरा सा मुस्कुराती है
किसी उदास को देख के ख़ुद भी उदास हो जाती है
कभी कभी अपने ही ख़यालो में वो खो जाती है
अपनी ठोकरों पर वह ख़ुद ही संभल जाती है
एक लड़की है जो किसी को समझ नहीं आती है ।

किसी के देखने से छुप और छूने से बिख़र जाती है
जब ख़ुश होती है तो भीड़ में भी निखर जाती है
कुछ पूछो तो उससे पहले ही चुप हो जाती है
बस एक निःस्वार्थ मुस्कान लेकर मुस्काती है
बस कभी कभी वह अपनी कहानियों को सुनाती है
अपने किसी भी दर्द को वह किसी से नहीं बताती है
एक लड़की है जो किसी को समझ नहीं आती है ।

Wednesday, April 4, 2018

मैं तप कर फ़िर अंगार बनूं

मैं नहीं चाहता जग में फ़िर
कहीं अलंकित नाम रहे
शांत सरल मृदुभाओं से ही
जगत प्रकाशित काम रहे
हो स्वेत वस्त्र सा मन मेरा
मैं विधवा का श्रृंगार करूं
मन को मैं उन्मादित करके
मैं तप कर फ़िर अंगार बनूं ।

चंदन का पुष्प सुगंधित हो
तन मन जग को वह महकाये
हो वायु सुगंधित भी उससे
हर मन को फ़िर वह बहलाये
मन के मलीन हर भावों का
सकुशल मैं भंगार बनूं
जीवन को आत्मसमर्पित कर
मैं तप कर फ़िर अंगार बनूं ।

सकुशल नीरव रस का प्रवाह
सुखी सरिता के जीवन में
पतझड़ का मौसम ही ठहरे
मेरे मन के सूखे वन में
मैं मन के अपने भावों का
अभेदित कारागार बनूं
प्रेम सहित सरिता वन फैले
मैं तप कर फ़िर अंगार बनूं ।

जीवन में प्रेम नहीं जिनके
मन उनका भी अनुरागी है
हो प्रेम यज्ञ का अनुष्ठान
हर जन उसमें प्रतिभागी है
इस प्रेम यज्ञ के अनुष्ठान में
मैं उसका सभागार बनूं
प्रेम प्रेम को कर आलंगित
मैं तप कर फ़िर अंगार बनूं ।

Monday, April 2, 2018

मेरे एहसास

मुझे नहीं पता था कि अपने दिखावे में मैं अपना अस्तित्व खो दूंगा
अपने अहंकार में कभी न पनपने वाले ऐसे भी बीज बो दूंगा
मुझे अब तक ऐसा नहीं लगता था कि मेरे साथ कुछ ऐसा हो सकता है
जो चीज़ उसकी हो ही न उसे कोई भला कैसे खो सकता है
कुछ बातें जो मुझे नहीं जाननी थी वो भी समझ आने लगीं थीं
हर बात के हमें एक अगल ही मायने समझा जाने लगीं थीं



मैंने कभी किसी से नहीं कहा कि मैं सर्वदा सही हूं
मैंने लोगों को जो कुछ भी  दिखाया है मैं वही हूं
किसी की भावनाओं के साथ खेलना मेरा पसंदीदा खेल तो नहीं
कोशिश करे औरसमझ पाए कोई इतना भी उलझा मैं बेल तो नहीं
निःसंदेह कहीं न कहीं यह मेरी ही कोई गलती बड़ी रही होगी
यूं ही नहीं क़िस्मत सिर्फ़ मेरे ही लिए उस मोड़ पर खड़ी रही होगी
मैं रास्तों को अपनी मंज़िल समझ कर रुक गया था सुस्ताने के लिए
हां नहीं पता था बहाने को भी जरूरत होती है बहानो के लिए
चलो मैं तो ग़लत था कुछ समझदारी तुमने ही दिखाई होती
कुछ बातें जो मुझे ग़लत पता थी तुमने तो सही बताई होती 
मैं मानता हूं कि मेरा विश्वास एक पल के लिए हिल गया था
मगर उस पल को भी तो बस वही एक पल मिल गया था
मैं लाख कोशिशों के बाद भी कई बातें मानने के लिए तैयार नहीं था
मैं भी तो विश्वास के लायक नहीं था इस बात से भी इंकार नहीं था
मैं सब कुछ जान और समझ भी जाऊं तो मुझे क्या मिल जाएगा
ऐसा तो नहीं है कि मुरझाया फूल आज फ़िर से खिल जाएगा
काश कि मैं यूं हर किसी की बातों न आकर ख़ुद को बदमान करूं
जो मुझे मिलना है बस उसी दिशा में सकारात्मक काम करुं
मैं सही तुम ग़लत तुम सही मैं ग़लत इन सबके परे चलते हैं
जहां नभ क्षितिज से मिले ऐसे कहीं गंतव्य पर चलते हैं 
चलो सूरज से नज़रें मिलने की फ़िर एक कोशिश नाक़ाम करते हैं
अब जो कुछ भी उसे न छुपाकर सब कुछ सरेआम करते हैं
चलो एक बार फ़िर से वो टूटने वाला विश्वास कर लेेते हैं
चलो एक बार सब कुछ सही होने का एहसास कर लेते हैं ।

एक कदम

पिछले कुछ महीनों में एक बात तो समझ में आ गयी कि इस दुनिया में कुछ भी स्थायी नहीं है। और स्थायित्व की कल्पना करना, यथार्थ से दूर भागने जैसा ह...