Monday, April 2, 2018

मेरे एहसास

मुझे नहीं पता था कि अपने दिखावे में मैं अपना अस्तित्व खो दूंगा
अपने अहंकार में कभी न पनपने वाले ऐसे भी बीज बो दूंगा
मुझे अब तक ऐसा नहीं लगता था कि मेरे साथ कुछ ऐसा हो सकता है
जो चीज़ उसकी हो ही न उसे कोई भला कैसे खो सकता है
कुछ बातें जो मुझे नहीं जाननी थी वो भी समझ आने लगीं थीं
हर बात के हमें एक अगल ही मायने समझा जाने लगीं थीं



मैंने कभी किसी से नहीं कहा कि मैं सर्वदा सही हूं
मैंने लोगों को जो कुछ भी  दिखाया है मैं वही हूं
किसी की भावनाओं के साथ खेलना मेरा पसंदीदा खेल तो नहीं
कोशिश करे औरसमझ पाए कोई इतना भी उलझा मैं बेल तो नहीं
निःसंदेह कहीं न कहीं यह मेरी ही कोई गलती बड़ी रही होगी
यूं ही नहीं क़िस्मत सिर्फ़ मेरे ही लिए उस मोड़ पर खड़ी रही होगी
मैं रास्तों को अपनी मंज़िल समझ कर रुक गया था सुस्ताने के लिए
हां नहीं पता था बहाने को भी जरूरत होती है बहानो के लिए
चलो मैं तो ग़लत था कुछ समझदारी तुमने ही दिखाई होती
कुछ बातें जो मुझे ग़लत पता थी तुमने तो सही बताई होती 
मैं मानता हूं कि मेरा विश्वास एक पल के लिए हिल गया था
मगर उस पल को भी तो बस वही एक पल मिल गया था
मैं लाख कोशिशों के बाद भी कई बातें मानने के लिए तैयार नहीं था
मैं भी तो विश्वास के लायक नहीं था इस बात से भी इंकार नहीं था
मैं सब कुछ जान और समझ भी जाऊं तो मुझे क्या मिल जाएगा
ऐसा तो नहीं है कि मुरझाया फूल आज फ़िर से खिल जाएगा
काश कि मैं यूं हर किसी की बातों न आकर ख़ुद को बदमान करूं
जो मुझे मिलना है बस उसी दिशा में सकारात्मक काम करुं
मैं सही तुम ग़लत तुम सही मैं ग़लत इन सबके परे चलते हैं
जहां नभ क्षितिज से मिले ऐसे कहीं गंतव्य पर चलते हैं 
चलो सूरज से नज़रें मिलने की फ़िर एक कोशिश नाक़ाम करते हैं
अब जो कुछ भी उसे न छुपाकर सब कुछ सरेआम करते हैं
चलो एक बार फ़िर से वो टूटने वाला विश्वास कर लेेते हैं
चलो एक बार सब कुछ सही होने का एहसास कर लेते हैं ।

No comments:

Post a Comment

एक कदम

पिछले कुछ महीनों में एक बात तो समझ में आ गयी कि इस दुनिया में कुछ भी स्थायी नहीं है। और स्थायित्व की कल्पना करना, यथार्थ से दूर भागने जैसा ह...