Sunday, October 29, 2017

जिसके पीपल की छांव तले

इक लंबा अर्शा बीत गया
उस चौबारे के सूनेपन में
जिसकी मिट्टी भाती थी
हमें ख़ूब अपने बचपन में
बहुत दूर का सफ़र हुआ यह
अब उस चौबारे को पाँव चले
तब ढेरों सपने पलते थे
जिसके पीपल की छांव तले ।
कितना लंबा सफ़र हुआ यह
क्या पाया क्या खोया है
वही फ़सल है बस अपनी
जिसको हमने न बोया है
थक हार के बैठें है जब भी
मन उस बचपन के गाँव चले
तब ढेरों सपने पलते थे
जिसके पीपल की छांव तले ।
उस मिट्टी में ही खेले थे
उस मिट्टी से ही फ़ैले हम
उस मिट्टी से ही साफ़ हुए
और उससे ही थे मैले हम
फ़िर से अब वह बारिश हो
जिसमें कागज की नाव चले
तब ढेरों सपने पलते थे
जिसके पीपल की छांव तले ।

Saturday, October 28, 2017

दो राहें थी इक घर को इक सपनों की ओर चली

अंधियारे को मिटते देखा था बस एक किरण सूरज की से
साख बदलते देखा था क्षण भर में मन की गर्मी से
चिड़ियों की गुंजन मद्धम थी कुछ सावन की हरियाली थी
आजीवन ना मिटने वाली एक साख गजब बना ली थी
क्षणभर में बाजी यूं पलटी किस्मत मुझसे मुंह मोड़ चली
दो राहे थी इक घर को इक सपनों की ओर चली ।

था कठिन समय वह निर्णय का सब कुछ उस पर था टिका हुआ
उस ईश्वर से आस उसी के आगे सिर था झुका हुआ
क्षण भर को राह वही देखा जिस पर से मैं हो आया था
शून्य से लेकर शिखर आज मैंने ख़ुद को पंहुचाया था
बचपन को एक बार सोचा स्मृति मुझको झगझोर चली
दो राहे थी इक घर को इक सपनों की ओर चली ।

बचपन में जो भी सोचा था वह आज पूर्ण हो आया था
सपनों वाली राह पे अपनी आगे ख़ूब निकल आया था
न हो विस्मृत कोई, न तप , न प्रयास किसी का
धन्य है जीवन यह जिससे , यह जीवन है मात्र उसी का
मां की ममता करके मुझको भाव विभोर चली
दो राहे थी इक घर को इक सपनों की ओर चली ।

सबकी उम्मीदें पूर्ण हुई सपने सबके साकार हुए
ईश्वर के मुझपर अविस्मरणीय उपकार हुए
सबको खुश करने का सपना मेरा बचपन से था
कुछ करने का एक जुनून सर पर मेरे छुटपन से था
सबकी ममता सपनों को करके मेरे कमज़ोर चली
दो राहे थी इक घर को इक सपनों की ओर चली ।

लौटा आज स्वयं मैं फिर बचपन की हरियाली में
चेहरे को छूती थीं बूंदे काली घटा निराली में
इक लंबी अवधि बीत गयी जब माँ ने ख़ूब खिलाया था
आँचल से ढककर लोरी गाकर गोदी में हमे सुलाया था
मां की लोरी फिर से कानों में करके शोर चली
दो राहे थी इक घर को इक सपनों की ओर चली ।

Monday, October 23, 2017

चलो अब तुम रहने दो

"चलो अब तुम रहने दो"
तोड़ दो यहीं झूठे वादों के सिलसिले
बढ़ते हैं तो बढ़ जाने दो ये फांसले
चलो बंद कर दो ये बेकार के आंसुओं को गिरना
बंद कर दो अपनी झूठी दलीलों से समझना
मैं कैसा हूँ अब तुम मुझे मत बताओ
जीने का नया तरीका तुम मुझे मत सिखाओ
दिल के सारे दर्द आंसुओं के साथ बहने दो
चलो अब तुम रहने दो ।




कुछ भी कहो पर अब झूठ मत बोलो
भले ही दिल के कोई राज़ मत खोलो
मत बनाओ नजरें चुराने के अब कोई बहाने
ठीक ही है आख़िर चेहरे भी तो हो जाते हैं पुराने
काश ये सब पहले ही हो गया होता
तो यूँ झूठें चेहरों के पीछे मैं न खो गया होता
फ़िर भी ठीक है मुझे अकेले ही ये सब सहने दो
चलो अब तुम रहने दो ।

मैं भी भावनाओं में कुछ यूं बह गया था
दिल की तमाम बातें भी कह गया था
इस छोटे से सफ़र बस एक साथ चाहिए था
अगर कहीं गिर जाऊं तो एक हाथ चाहिए था
अगर ये भी न होता पाता तो बता दिया होता
मुँह से न नहीं कम से कम नजरों से जता दिया होता
तुमने तो कह दिया अब बस मुझे कहने दो
चलो अब तुम रहने दो ।

एक कदम

पिछले कुछ महीनों में एक बात तो समझ में आ गयी कि इस दुनिया में कुछ भी स्थायी नहीं है। और स्थायित्व की कल्पना करना, यथार्थ से दूर भागने जैसा ह...