Sunday, October 29, 2017

जिसके पीपल की छांव तले

इक लंबा अर्शा बीत गया
उस चौबारे के सूनेपन में
जिसकी मिट्टी भाती थी
हमें ख़ूब अपने बचपन में
बहुत दूर का सफ़र हुआ यह
अब उस चौबारे को पाँव चले
तब ढेरों सपने पलते थे
जिसके पीपल की छांव तले ।
कितना लंबा सफ़र हुआ यह
क्या पाया क्या खोया है
वही फ़सल है बस अपनी
जिसको हमने न बोया है
थक हार के बैठें है जब भी
मन उस बचपन के गाँव चले
तब ढेरों सपने पलते थे
जिसके पीपल की छांव तले ।
उस मिट्टी में ही खेले थे
उस मिट्टी से ही फ़ैले हम
उस मिट्टी से ही साफ़ हुए
और उससे ही थे मैले हम
फ़िर से अब वह बारिश हो
जिसमें कागज की नाव चले
तब ढेरों सपने पलते थे
जिसके पीपल की छांव तले ।

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