रचना उसकी अति सुंदर है
मौलिकता उसका आधार सदा
जनमानस से गहरा नाता
करता सबका आभार सदा ।
मुखमंडल उसका अति तेजवान
रवि किरणों से फैला जाता
दुःख दर्द सभी के घावों को
निःस्वार्थ प्रेम सहला जाता ।
उसकी रचना के भावों से
कविता का मुख खिल जाता है
प्यासी धरती कर हरी भरी
नभ को भी वह भाता है ।
रचना में मैं न दिखता है
जन जीवन पर विचार रहा
शांत सरल सी रचना में
हर पीड़ा का उपचार रहा ।
ईश्वर उसको शक्ति देगा
उसे नहीं अब रुकना है
हो विकट समस्या भी कितनी
उसे नहीं अब झुकना है ।
नहीं तनिक दूर समय वह
जब नभ में छा जाएगा
अपनी कविता के अमृत को
जन जन पर बरसायेगा ।
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