शिखर बिंदु पर तब मैं था
उत्तण्ड सूर्य सा दिखता था
अस्त्र शस्त्र सब फ़ीके थे
निर्भीक निडर हो लिखता था
शासन सत्ता का जोर हुआ
यह देख मुझे हैरानी है
मतलब भर केवल उठता हूं
बस मेरी यही कहानी है ।
उठा कभी तो लोगों ने
मुझको मार गिराया है
अडिग हुआ यदि पथ पर मैं
घर आ आकर धमकाया है
नदियां अब सारी स्थिर हैं
कूपों में बहता पानी है
हूं निसहाय अभी तो मैं
बस मेरी यही कहानी है ।
किन्तु सूर्य का तेज़ रोक ले
ऐसा कोई वीर नहीं है
नभ से न गिर जाए ऐसा
जग में कोई नीर नहीं है
सच से न भय खाता हूं
सच बहता जैसे पानी है
आज उगा हूं कल फैलूँगा
बस मेरी यही कहानी है ।
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