चिड़ियों की आवाजें भी बदली
मौसम की हरियाली भी
बरखा की बूंदे भी बदली
सावन घटा निराली भी
कई जमाने यूं ही बदले
खड़े खड़े बतियाने में
कितना सब कुछ बदल गया
जाने अनजाने में ।
मैं चातक पक्षी को भी
आसमान में ढूढ़ रहा
चका चौंध और भागदौड़ में
मैं किंकर्तव्यविमूढ़ रहा
नहीं जमाने चलते बीते
बदल गया सुस्ताने में
कितना सब कुछ बदल गया
जाने अनजाने में ।
बच्चों की मुस्कानें में ही
मैंने ख़ुशी सदा पायी है
मीठी प्यारी प्यारभरी
आवाजें मन को भायी है
हंसना बदल गया रोने में
गुड़ियों से फुसलाने में
कितना सब कुछ बदल गया
जाने अनजाने में ।
मां की लोरी सबसे प्यारी
वही रही थी बचपन में
इतना शोर शराबा है
वह दबी रह गयी मेरे मन में
मां की लोरी दबी रह गयी
गाने और बजाने में
कितना सब कुछ बदल गया
जाने अनजाने में ।
कुछ साथ मिले कुछ गए
किसी से अच्छा ख़ासा पाठ लिया
कुछ से छूटे दमन फिर कहीं
किसी का साथ मिला
कौन मिला और कितने छुटे
स्वार्थ सहित ज़माने में
कितना सब कुछ बदल गया
जाने अनजाने में ।
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