गहन उजाली पसर रही थी
बहती सरिता के तीरों पर
श्वेत चांदनी उलझ रही थी
गुज़र रहे राहगीरों पर ,
सरिता में लगते देखा फिर
चाँद-चांदनी का मेला
अति सुंदर वह पहर रहा
फ़िर शब्दों से मैंने खेला ।
मनमोहक अति वह दृश्य रहा
रजनी रति भी झलक रही
प्रेम सहित आलिंगन हो
रजनी की भी यह ललक रही,
पल भर को ही वह पहर रहा
फ़िर बीत रही रजनी बेला
मन से मन में था शांत रहा
फ़िर शब्दों से मैंने खेला ।
सरिता लहरों पर चंचल क्रीड़ा
नभ से बरस रहा श्रृंगार
राग मिलन सरिता से फ़िर
इस स्मृति का मन पर प्रहार,
इस पल को कर तन्हाई में
क़दम बढ़ा मैं चला अकेला
मद्धम सरिता पर तेज़ हवा
फ़िर शब्दों से मैंने खेला ।
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