Tuesday, March 6, 2018

काश !

काश कि मैंने उस रात तुम्हारी बात मान ली होती
और ज़ी भरके तुम्हें यूं न देखा होता
मैं तो आज भी वहीं रह गया, पर
वो ग़लती न होती तो अनदेखा न होता ।

कह दो कि तुम चाहते थे मैं तुम्हे न देखूँ
फ़िर क्यों मुझे एक दफ़ा नहीं रोका था
मैं तो उन मासूम आंखों की मासूमियत देखता था
न मालूम था कि नज़रों का सबसे बड़ा धोखा था ।

माना कि मैं ग़लत था तो तुम भी अनजान नहीं थे
इरादे भले ही न सही तुमसे बेईमान नहीं थे
पल भर को मैं समझ ही नहीं पाया था
पर यूँ तुम भी तो एक पल के मेहमान नहीं थे ।

न जाने कितनी गलतियां होती रहीं है मुझसे इस ज़माने में
तुम थे सही? नहीं तुम्हारी भी यही रज़ा मंदी थी
मैं सब कुछ देख सकता हूं बंद आंखों से भी
पर उस रात मेरी खुली आंखे भी अंधी थीं ।

मैं वो न देख सका जो मुझे सच मे देखा था
जो तुमने चाहा मैं वो सब करता चला गया था
काश की तुम फ़िर कर दो सारी ग़लती तुम्हारी रही
लंबी सांसे मैं गहराई से भरता चला गया था ।

काश की तुम मुझे झूठा बनाकर खुद को बचा लो
अपनी सफाई में मैं एक शब्द भी नहीं बोलूंगा
मैंने अपनी आंखें उस रात भी नहीं खोलीं थी
मैं उन्हें आज भी नहीं खोलूंगा ।







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