शब्द मेरे हम इंसानों सा रोते हैं
मैं वेदना की गहराई लिखता हूं ,
उजाले में हर कोई साथ चलता है
अंधेरों में भी मैं परछाई लिखता हूं ,
अपने दुःख में मैं चुप हो जाता हूं
दूसरों के सुख में शहनाई लिखता हूं ,
मैं चुप होके भी कुछ कह जाता हूं
ऐसे एहसासो की करिश्माई लिखता हूं ,
ऐसी वृद्धि को मैं महंगाई लिखता हूं ,
उजालों तक ही हों जो सीमित कदम
इसको ही स्वार्थ पूर्ण हिताई लिखता हूं,
जहां पवित्र हो जाये आत्मा मिले शांति
उनको ही मैं सावन रमजायी लिखता हूं ,
जहां न हो भेदभाव न कोई ऊंच नीच
ऐसे व्यवहार को प्रभुताई लिखता हूं ,
दिल का सरल होना भी बेहद जरूरी है
सबके हृदयं में एक नरमाई लिखता हूं ,
बात जहां हो सम्मान के रक्षा की
उस स्थिति में मैं कड़ाई लिखता हूं ,
कठिन परिस्थितियों में सरल व्यवहार
ऐसे मनः दशा को चतुराई लिखता हूं ,
मैं इंसानों को भी पर दे दूं परिंदों सा
फ़िर आकाश कोअनंत ऊंचाई लिखता हूं ,
जहां से करें मानवता का अमृतपान हम
गुरुबान क़ुरान गीता व चौपाई लिखता हूं ,
मानव सेवा ही मेरा धर्म रहा सदा से ही
मैं तो रब ख़ुदा ईश रघुराई लिखता हूं
अच्छों के साथ अच्छा बुरों के साथ भी
देखा हरदम अच्छा है न बुराई लिखता हूं ,
जिस मचान पर ठिठुर गयी ख़ुद सर्दी भी
उस ठिठुरन को ही मैं रज़ाई लिखता हूं ,
जब स्वार्थ ही नींव हो जाये रिश्तों की
फ़िर इनसे मैं बेहतर तन्हाई लिखता हूं ,
जब भी निराश हो झगझोर दे मन को
एहसासों की ऐसे में गरमाई लिखता हूं ,
इस विस्तृत भू भाग की संरचना है अद्भुत
पहाड़ों की ऊंचाई कहीं राई लिखता हूं ,
एक ऐसा स्वरूप जिसमे है निःस्वार्थ प्रेम
मां माता अम्मी कहीं माई लिखता हूं
बेनक़ाब चेहरों पर रंग नहीं चढ़ते हैं
सादगी को भी अलग रंगाई लिखता हूं ,
अपने दर्द में मैं चुप चाप रो लेता हूं
फ़िर दूसरों के दर्द की दवाई लिखता हूं ,
जहां बांध दे दीवारे चलने से हमें
वहां कुछ मार्ग हवाई लिखता हूं ,
तूफ़ानों की भीअपनी एक कहानी होती है
हवा के रुख़ को पुरवाई लिखता हूं ,
कुछ विरोभाष मन में जो छिपे हैं
मैं ऐसे विचारों की सफ़ाई लिखता हूं ,
खेल कभी कुछ एहसासों को तोड़ते है
मैं कुछ खेल तमाशाई लिखता हूं ,
जहां टूट जाये उम्मीद और हार जाएं हम
वहां मैं विश्वासों की भराई लिखता हूं ,
गिर जानेपर भी पेड़ों में शाख निकलती है
इसको ही क़ुदरत कीरहनुमाई लिखता हूं ,
इस प्रकृति का रहस्य अनन्त है यहाँ
कहीं नदियां पहाड़ कहीं खाई लिखता हूं ,
गलतियों को मैं अपनी कभी नहीं छुपाता
कभी हिसाब तोकभी भरपाई लिखताहूं ।