Sunday, April 8, 2018
एक लड़की है जो किसी को समझ नहीं आती है
Wednesday, April 4, 2018
मैं तप कर फ़िर अंगार बनूं
मैं नहीं चाहता जग में फ़िर
कहीं अलंकित नाम रहे
शांत सरल मृदुभाओं से ही
जगत प्रकाशित काम रहे
हो स्वेत वस्त्र सा मन मेरा
मैं विधवा का श्रृंगार करूं
मन को मैं उन्मादित करके
मैं तप कर फ़िर अंगार बनूं ।
चंदन का पुष्प सुगंधित हो
तन मन जग को वह महकाये
हो वायु सुगंधित भी उससे
हर मन को फ़िर वह बहलाये
मन के मलीन हर भावों का
सकुशल मैं भंगार बनूं
जीवन को आत्मसमर्पित कर
मैं तप कर फ़िर अंगार बनूं ।
सकुशल नीरव रस का प्रवाह
सुखी सरिता के जीवन में
पतझड़ का मौसम ही ठहरे
मेरे मन के सूखे वन में
मैं मन के अपने भावों का
अभेदित कारागार बनूं
प्रेम सहित सरिता वन फैले
मैं तप कर फ़िर अंगार बनूं ।
जीवन में प्रेम नहीं जिनके
मन उनका भी अनुरागी है
हो प्रेम यज्ञ का अनुष्ठान
हर जन उसमें प्रतिभागी है
इस प्रेम यज्ञ के अनुष्ठान में
मैं उसका सभागार बनूं
प्रेम प्रेम को कर आलंगित
मैं तप कर फ़िर अंगार बनूं ।
Monday, April 2, 2018
मेरे एहसास
एक कदम
पिछले कुछ महीनों में एक बात तो समझ में आ गयी कि इस दुनिया में कुछ भी स्थायी नहीं है। और स्थायित्व की कल्पना करना, यथार्थ से दूर भागने जैसा ह...
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पिछले कुछ महीनों में एक बात तो समझ में आ गयी कि इस दुनिया में कुछ भी स्थायी नहीं है। और स्थायित्व की कल्पना करना, यथार्थ से दूर भागने जैसा ह...
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Now it's very important for me to write today. I am not sad, I am not tired, I am not hopeless, I am not even negative. I am just dying...
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शिखर बिंदु पर तब मैं था उत्तण्ड सूर्य सा दिखता था अस्त्र शस्त्र सब फ़ीके थे निर्भीक निडर हो लिखता था शासन सत्ता का जोर हुआ यह दे...

