Thursday, August 24, 2017

न जाने वह दिन लौटकर फिर कब आएगा ।

क्या फिर से वह शर्माती गुनगुनाती सुनहली शाम होगी
क्या सूरज को छुपाने के लिए रात फिर से बदनाम होगी
क्या बारिश की बूंदों को चातक आसमान में पी जाएगा
क्या फिर प्यार मोहब्बत के पैगाम कबूतर लेकर आएगा
क्या सब कुछ बदल कर पहले जैसा हो जाएगा
न जाने वह दिन लौट कर फिर कब आएगा ।



क्या इंसान ईर्ष्या चोरी आदि को छोड़कर बदलना शुरू करेगा
या फिर अपने ऐसे कर्मों का एक बड़ा हिसाब भरेगा
क्या फिर सब एक साथ बैठकर एक दूसरे को सुनेंगे
एक साथ मिलकर सबके उद्भव  विकास के ताने बाने बुनेंगे
क्या फिर से इंसान इंसान के सुख-दुख का साथी कहलाएगा
न जाने वह दिन लौट कर फिर कब आएगा ।

इतनी भीड़ है फिर भी हर इंसान अकेला चलता है
इंद्रधनुष के रंगों सा प्रतिपल वह रंग बदलता है
स्वार्थी हो जाना जैसे इंसान की फितरत हो गई है
मानव के अंदर मानवीयता शायद कहीं खो गई है
क्या फिर से मोर बारिश होने का संदेश सुनाएगा
न जाने वह दिन लौट कर फिर कब आएगा ।

क्या फिर से ढोलक और फगुई गीत सुनाई देंगे
क्या हरियाली और आम के पेड़ दूर से ही दिखाई देंगे
क्या हम पेड़ों को काटना छोड़ लगाना शुरु करेंगे
क्या हर टूटे हुए में हम फिर से एक आश भरेंगे
सब कुछ कितना सुखद और शांत हो जाएगा
न जाने वह दिन लौट कर फिर कब आएगा ।
                        

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