पिछले कुछ महीनों में एक बात तो समझ में आ गयी कि इस दुनिया में कुछ भी स्थायी नहीं है। और स्थायित्व की कल्पना करना, यथार्थ से दूर भागने जैसा है। आज जबकि दुनिया एक ऐसे मोड़ पर खड़ी है जहां आदमी का बचे रहना ही सबसे बड़ी उपलब्धि है, ऐसे में हम सबसे बड़े हैं, हमें कुछ नहीं हो सकता, हम आर्थिक रूप से बहुत मजबूत हैं आदि आदि सोचना भी हमारी नासमझी का सटीक उदाहरण है।
दुनिया प्रेम से चलती है। इसलिए दुनिया में प्रेम होना बहुत जरूरी है। इंसान होने के नाते हमारा सबसे पहला और बड़ा धर्म यही है कि हम प्रेम करें। प्रेम इंसानों से, जगहों से, पेड़ों से, नदियों से, पहाड़ों से और हर उस चीज से जो इस दुनिया में उपस्थित है।
प्रेम के बिना जीवन की कल्पना करना बेकार है। एक बार के लिए अगर सोचा भी जाए तो कल्पना कीजिए कि हम एक ऐसी दुनिया में हैं जहां घृणा का बोलबाला हो, जहां जानबूझकर एक दूसरे को गिराने की जद्दोजहद चल रही हो, जहां एक रोते हुए आदमी से कोई उसका कारण न पूछ रहा हो, जहां अनायास ही किसी को देखकर कोई मुस्कुरा न रहा हो, जहां सब अपने अपने स्वार्थ सिद्धि में लगे हों, जहां अंधाधुंध पेड़ काटे जा रहे हों, जहां नदियों को आंख बंद करके गंदा किया जा रहा हो, जहां कोई किसी की खोज खबर न ले रहा हो....... ऐसे दुनिया में रहना कितना मुश्किल होगा।
अरे...... हम ऐसी ही किसी दुनिया में अभी भी रह रहे हैं ना? अगर आपके मन में इस सवाल का जवाब हां है तो इस दुनिया को बेकार बनाने में आपका भी योगदान है।
ऐसा नहीं है कि हम इस दुनिया को खूबसूरत नहीं बना सकते, ऐसा भी नहीं है कि हम प्रेम नहीं कर सकते.... जरूरत है तो उठकर खड़े होने की और बस एक सिर्फ एक कदम चलने की। एक कदम चल देने भर से, इस दुनिया की सभी दूरियों को ख़तम किया जा सकता है।
मुझे उम्मीद है, आप एक कदम जरूर चलेंगे। एक कदम...... बस एक।